Homeअग्निहोत्र मंत्रार्थ32. अग्ने नय सुपथा.. १..!!

32. अग्ने नय सुपथा.. १..!!

अग्ने नय सुपथा राये ऽ अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुराणमेनो भूयिष्ठान्ते नम ऽ उक्तिं विधेम।। 8।।(यजु.अ.40/मं.16)

        हे स्वप्रकाश, ज्ञानस्वरूप, सब जगत् के प्रकाश करनेहारे सकल सुखदाता परमेश्वर ! आप जिससे सम्पूर्ण विद्यायुक्त हैं, कृपा करके हम लोगों को विज्ञान वा राज्यादि ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए अच्छे धर्मयुक्त आप्त लोगों के मार्ग से सम्पूर्ण प्रज्ञान और उत्तम कर्म प्राप्त कराइये और हमसे कुटिलतायुक्त पापरूप कर्म को दूर कीजिए। इस कारण हम लोग आपकी बहुत प्रकार से नम्रतापूर्वक स्तुति सदा किया करें और आनन्द में रहें।

स्वयं प्रकाशित ज्ञानरूप हे ! सर्वविद्य हे दयानिधान।

धर्ममार्ग से प्राप्त कराएं, हमें आप ऐश्वर्य महान्।।

पापकर्म कौटिल्य आदि से, रहें दूर हम हे जगदीश।

अर्पित करते नमन आपको, बारंबार झुकाकर शीश।।

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