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दयानन्द बावनी - Santasa
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दयानन्द बावनी

४४- सत्यार्थ प्रकाश

कैधों अवनि को एक अजर-अमर ग्रन्थ।

कैधों आर्य समाज को आतम उल्लास है।।

कैधों अनमोल महा रत्नों को रत्नाकर की।

वेद को विशेष सत्त्व तत्त्व को प्रकाश है।।

कैधों आर्यवीरों ने पायो है प्रेमपुंज आज।

काराणी कहत कैधों अविद्या विनाश है।।

सत्य की सुवास वेद विद्या को विलास कैधों।

स्वराज रहस्य वो ही सत्यार्थ प्रकाश है।।४४।।

४५- शेर बब्बर था

भारत के नरवर जगत के गुरुवर।

पुरुष-प्रवर तू प्रखर वीरवर था।।

नेता नर नाहर तू अडग गिरिवर तू।

सदा सुखकर तू शीतल सरवर था।।

काराणी कहत गरजत महासागर सा।

असत तिमिर पर उग्र दिनकर था।।

नीडर निरभिमानी निरअभिलाषी नर।

शौर्य वीर्य साहस में शेरे बब्बर था।।४५।।

४६- बल दल

दया-बल, मया-बल विमल विनोद बल।

वेद शास्त्र बल का सबल शस्त्र बल था।।

विद्या बल वाणी बल युक्ति प्रयुक्ति का बल।

पूर्ण प्रेम बल का अमल परिमल था।।

तन बल, मन बल, बाहु बल बुद्धि बल।

ब्रह्मचर्य बल पे बलिष्ट आत्मबल था।।

असत अरिदल के बादल बिहारिबे को।

दयानन्द तेरा बल-दल ये प्रबल था।।४६।।

४७- जागे

काल की कमान जागे पत्थर में प्राण जागे।

हिन्द के जवान जागे तेरे शब्दबाण से।।

भारत की शान जागे नेह के निधान जागे।

वेद धर्मध्यान जागे वेद के विधान ते।।

महामतिमान आर्य जाति की जबान जागे।

प्राण हु के प्राण जागे तेरे प्रातः गान ते।।

प्रेम की पिछान जागे आत्म अभिमान जागे।

देव दयानन्द तेरे वेद ज्ञान दान ते।।४७।।

४८- शहीदों के सिरमौर

आर्यत्व की इमारत केते-केते शहीदों के।

खून पे खड़ी है ऐसे प्रेम-धर्म-पूर थे।।

वीर लेखराम धर्मवीर राजपाल आदि।

संन्यासी शहीद श्रद्धानन्द मशहूर थे।।

हुए बलिदान हिन्द गौरव गोविन्द गुरु।

केसरी कराल वीर बंदा बहादूर थे।।

काराणी कहत सत शहीदों के सिरमौर।

ऋषि दयानन्द सब शूरन में शूर थे।।४८।।

४९- लेटा तेरी गोदी बीच बेटा दयानन्द सा

टंकारे का बंका तेरे मन्त्रों ने बजाया डंका।

पाखण्डों की लंका जलाने में हनुमन्त सा।।

क्रान्तिकारी कर्मयोगी क्रान्तदर्शी कर्मवीर।

धर्म के ज्योतिर्धर ज्ञान में गयंद सा।।

परम समर्थ सत्य तत्त्व प्रतिपादन में।

असत्य उत्थापन में अधीर अमंद सा।।

धन्न मात भारती हजार बार धन्न-धन्न।

लेटा तेरी गोदी बीच बेटा दयानन्द सा।।४९।।

५०- तू न होता तो

धर्म-कर्म-ध्याता नवयुग निर्माता तू ही।

भव्यतम भारत के भाग्य का विधाता तू।।

तेज तेरा ताता दुःख दैत्य अकुलाता जाता।

शान्ता सुखदाता माता भारती को भाता तू।।

वेदों को दबाता छुपे होने में छुपाता विप्र।

व्हां से खोज लाता वो ही वेद गुन ज्ञाता तू।।

आर्यधर्म त्राता आर्यत्व को चमकाता कौन।

काराणी कहत जो न होता वेद-दाता तू।।५०।।

५१- जयकार

भारती के नन्द दया आनन्द के कन्द दया।

नन्द ने उड़ाई नीन्द हिन्द आर्यवृन्द की।।

तीव्र तपको प्रताप शान्ति सौम्यता अमाप।

आदित्य के ताप आप ज्योति शीत चन्द की।।

काराणी कहत दयानन्द की दया ते आई।

हिन्द की आजादी गई बात छाल-छन्द की।।

पारावार प्यार के पोकारन तें बार-बार।

बोलो जयकार युगदेव दयानन्द की।।५१।।

५२- बावनी

आर्य जाति के जहाज महाऋषिराज आज।

बावनी समाप्त हुई मेरे मन-भावनी।।

महर्षि के भक्तवर आर्यवीर वल्लभ की।

प्रेममयी प्रेरणा सी सदा सुख पावनी।।

कवि अनुभवी न पण्डित न प्रवीण यह।

अंतर की अंजलि श्रद्धांजलि सोहावनी।।

काराणी की वाणी कहां सागर का पानी कहां।

सिंधु दयानन्द एक बिन्दु मेरी बावनी।।५२।।

जब लग सूरज सोम है, जब लग आर्य समाज।

तबलग अविचल आप हैं दयानन्द गुरुराज।।

दीपत दिन दीपावलि दो हजार दश साल। पूर्ण प्रकट भई बावनी बावन दीपक माल।।

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